हे प्रश्न कर्ता ! तुमने राम से
यह कैसा प्रश्न किया है ?
राम ने तो मात्र सत्य का ही पक्ष लिया है
प्रजापालक, प्रजारंजक का जो विशेषण तुमने दिया है,
राम ने तो उसे ही सार्थक किया है
एक अबला क वनवास देकर अन्याय नहीं किया है
राजतन्त्र में भी प्रजातंत्र की स्थापना हेतु
अपने दांपत्य जीवन का बलिदान दिया है
धोबी की भर्त्सना मात्र एक व्यक्ति की अभिव्यक्ति नहीं थी
पूरे जनमत की वह कटूक्ति थी
तात्कालिक परिस्थितियों की सामाजिक अनिवार्यता को समझते हुए
अपनी अर्धांगिनी , सहधर्मिणी, अनुगामिनी, प्राणप्रिया
जानकी को अपने से विलग किया है
उन्हें क्या राजगद्दी की अभिलाषा थी ?
तो पिता के साथ प्रतिज्ञापूर्ण हुई मान
माता कैकेयी, भ्राता भरत के साथ लौट न जाते
लंका का राज्य विभीषण को
और
किष्किन्धा का राज्य सुग्रीव को क्यों सौंप आते
राज्य के लिए सीता को छोड़ने का दोष
तुमने व्यर्थ ही दिया है
"यथा राजा तथा प्रजा ' को चरितार्थ करने हेतु
अपनी जीवन संगिनी पत्नी को अपने से अलग किया है
सीता से पहले, राम के जीवन में अन्य कोइ स्त्री न थी
उसके विछोह में भी वही उनके ह्रदय- सिंहासन
पर विराजमान थी
उन्होंने तो धर्म- कर्म के बहाने से भी
अन्य रमणी को , पत्नी का स्थान नहीं दिया है
अपने अगाध, असीम, अमित प्रेम की पवित्रता को
सीता की स्वर्ण-प्रतिमा में प्रतिष्ठित किया है
प्रश्नकर्ता ! तुमने यह कैसा प्रश्न किया है
सीता के प्रति एकनिष्ठ होकर
जहाँ एक ओर उसकी निष्ठां, आस्था को संबल दिया है
वहां दूसरी ओर सीता के विश्वास को सम्मानित किया है
ऐसा सम्मान और गौरव कितने पुरुषों ने
अपनी पत्नी को दिया है ?
हे प्रश्नकर्ता ! आदर्श राजा होने की महत्वाकांक्षा
के कारण नहीं , अपितु उसकी अनिवार्यता के लिए
राज्य के लोभ से नहीं, बल्कि प्रजा के क्षोभ से
कातर होकर सीता को छोड़ दिया है
क्या तुम नहीं जानते, प्रश्नकर्ता ?
राजा के (राजनेता के ) आदर्श न होने ने
प्रजा का कितना अनर्थ , राष्ट्र का कितना अहित किया है
सीता के लिए राज्य छोड़ देते
सीता पर लगाये कलंक को आजीवन ढोते
और पदच्युत होकर क्या उसे गरिमा और प्रतिष्ठा देते
या फिर ग्राम की वीथियों में
नगर के जनपदों में
सीता की 'अग्नि-परीक्षा' की कथा कहते
जानकीनाथ ने सीता को सीता के हेतु छोड़ दिया है
सीता की जिस आस्था को
रावण का सम्पूर्ण राज्य , शक्ति, वैभव हिला तक न सके
वह क्या वाल्मीकि के (तपोवन ) आश्रम में टूट जाती
राम ने छल से वनवास नहीं दिया
यदि वह सीता से 'जनमत' की समस्या की
चर्चा मात्र भी करते
तो पतिभक्ता सती सीता सरयू में डूब ही मरती
लोक समस्या का समाधान सम्भवत: यूं ही वह प्रस्तुत करती
भावी वंशधरो से रघुवंश को वंचित रखती
हे प्रश्नकर्ता यह कैसा प्रश्न किया है
राम से सत्य का पक्ष ही नहीं लिया है
अपितु जीवन में सत्य को ही जिया है
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