Wednesday 4 May 2011

बसेरा न होता



जो महताब, बादल ने घेरा न होता 
मेरे  आशियाँ  में  अँधेरा  न   होता 

अगर मेरी छत से ये सूरज गुज़रता 
तो ग़मगीन  इतना  सवेरा  न  होता 

बरसता जो मेरे भी आँगन में सावन 
तो काँटों  का  फिर ये बसेरा न होता 

अगर  तुम  न  होते  मेरी जिंदगी में 
मेरे  पास  कुछ  भी तो  मेरा न होता 

अगर  तुम  कहीं  साथ  मेरा निभाते 
जो होता भी  गम  तो  घनेरा न होता 

ये  जीवन  की  रेखाएं  यूं  न बदलतीं 
जो   छूटा  कहीं  साथ  तेरा  न  होता 


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