क्यूँ मुझको तड़पाता है ये चाँद ज़रा सा
दिल में आग लगाता है ये चाँद ज़रा सा
मैं तेरी ही यादों में खो जाती हूँ बस
जब मुझको दिख जाता है ये चाँद ज़रा सा
मन चकोर पर मत पूछो क्या- क्या गुज़रे है
जब घट कर रह जाता है ये चाँद ज़रा सा
साथ समय के रूप बदलना ही पड़ता है
हम सबको सिखलाता है ये चाँद ज़रा सा
बड़े-बड़ों को देखा दोष छिपाते हमने
अपना दाग दिखाता है ये चाँद ज़रा सा
दीप दिवाली में जगमग जगमग करते हैं
औ र कहीं खो जाता है ये चाँद ज़रा सा
दिल से दिल मिल जाते, शिकवे मिट जाते हैं
ईद में जब दिख जाता है ये चाँद ज़रा सा
'रेखा' के दिल को मिलता आनंद अमित, जब
बन किताब छप जाता है ये चाँद ज़रा सा
No comments:
Post a Comment