कुछ सुनना नहीं रहा बाकी
सागर की खनक सुनकर साक़ी
प्यास बढ़ाने को मैं जो हाथ बढाऊँ
आँखों से एक बार मुस्करा देना साकी
फिर पीना न रहे बाक़ी, पिलाना न रहे बाक़ी
अंधेरों में गुम था मैं
जो तेरे नाम के साथ जुड़कर हुआ बदनाम
उजाले की तलाश न रही बाक़ी
मौसम खूबसूरत हैं बेखुदी का आलम है
ऐसे में जाओ, तुम मुझे छोड़ कर जाओ
मेरा होश में आना है अभी बाक़ी
आ गया जो होश, जा न सकोगे साक़ी
No comments:
Post a Comment