कुछ तीर, कुछ तुक्के
हाय ! ये भी क्या जज्बात हैं दिल के
वक्त की आवाज़ हैं
दर्द का साज़ हैं
किसे बताएं
किससे छुपायें
कोइ तो समझाए
इन्हें लेकर कहाँ जाएँ ?
हाय ! पलकों की चिलमन में
ठिठके ये आंसूं
अगर पी जाएँ
ज़हर हो जाएँ
बहा दें तो कहर ढाए
कोइ तो बताये
इन्हें लेकर कहाँ जाएँ ?
हाय ! ये लफ्ज़ जो होठों पे आये
कभी रोते, कभी हँसते
अरमानों के ये गुलदस्ते
न गीत, न ग़ज़ल बन पाए
न मुक्तक, न शेर कहलाये
कोइ तो बताए
किसे सुनाएँ
किस महफ़िल में ले जाएँ ?
हाय ! कलम की नोक से
टपके ये कतरे दर्द के
दिल चीर कर निकल आयें
किसे दिखाएँ ?
किसे पढ़ायें ?
कोई तो बताये
इन्हें लेकर कहाँ जाएँ ?
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