Monday 2 May 2011

ये कतरे दर्द के ( स्वकथ्य )


कुछ तीर, कुछ तुक्के 
हाय ! ये भी क्या जज्बात हैं दिल के 
वक्त की आवाज़  हैं 
दर्द का साज़ हैं 
किसे बताएं 
किससे छुपायें 
कोइ तो समझाए
इन्हें लेकर कहाँ जाएँ ?

हाय ! पलकों की चिलमन में 
ठिठके ये आंसूं 
अगर पी जाएँ 
ज़हर हो जाएँ 
बहा दें तो कहर ढाए 
कोइ तो बताये 
इन्हें लेकर कहाँ जाएँ ?

हाय ! ये लफ्ज़ जो होठों पे आये 
कभी रोते, कभी हँसते 
अरमानों के ये गुलदस्ते 
न गीत, न ग़ज़ल बन पाए 
न मुक्तक, न शेर कहलाये 
कोइ तो बताए 
किसे सुनाएँ 
किस महफ़िल में ले जाएँ ?

हाय ! कलम की नोक से 
टपके ये कतरे दर्द के 
दिल चीर कर निकल आयें 
किसे दिखाएँ ?
किसे पढ़ायें ?
कोई तो बताये 
इन्हें लेकर कहाँ जाएँ ? 



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