Tuesday 26 April 2011

याचना

हे माँ पुस्तक पाणि !
वर दे, वर दे, वर दे 
तेरी आराधना में, शब्दों की साधना में 
लुटाती रहूँ अबाध शेष जीवन की निर्झर धार
देकर लेखनी को शक्ति का दान
हर कर हर बाधा, शब्द-सृष्टि को प्रकाशित कर दे,
वर दे, वर दे, वर दे 

हे माँ वीणावादिनी !
ह्रदय के मूक भावों को
तू शब्दों के स्वर दे
मिटती रेखा को कर अक्षर 
नव-अधरों के गीतों में तू अमर कर दे, 
वर दे, वर दे, वर दे

हे माँ शारदे !
तेरी अनुकम्पा का अनुपम उपहार
बना रहे मेरे जीते रहने का आधार
अकिंचन धन को प्रचुर कर,
जीवन-यापन की चिंता से मुक्त कर दे,
वर दे, वर दे, वर दे

हे माँ भारती !
किये तूने अनंत उपकार, दिए अनंत उपहार
तथापि मैं बनी रही सर्वदा याचक ही
किन्तु समर्थ माँ से मांगने में लज्जा कैसी ( पुत्री को )
पर अब मेरी दीनता, क्षुद्द्र्ता , अभावों को बिना कहे तू हर ले
वर दे, वर दे, वर दे.........    




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